आधुनिक रसोईघरों में जिन नई सब्जियों ने आज अपना स्थान बनाया है, उसमें अजमोदा (ajmoda plant) सबसे महत्त्वपूर्ण सब्जी है। अजमोदा को कई स्थानों पर सेलेरी या बोकचॉय के नाम से भी जाना जाता है। लंबे समय से तिब्बती और चीनी इलाकों में इसका प्रयोग सब्जी की भांति किया जाता रहा है। सब्जियों के अलावा अजमोदा का प्रयोग सूप और सलाद में अधिक किया जाता है, लेकिन आपको यह नहीं पता होगा कि इस अजमोदा का उपयोग करके आप अनेक बीमारियों से भी बच सकते हैं। आइये जानते हैं, अजमोदा के औषधीय गुणों और प्रयोग के बारे में ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसके प्रयोग से आप स्वास्थ्य लाभ ले सकें।
Ajmoda ke fayde
अजमोदा (Ajmoda Plant) का पौधा अजवायन (Ajmoda And Ajwain) के पौधे से मिलता-जुलता होता है, लेकिन इसका पौधा अजवायन के पौधे से थोड़ा बड़ा होता है और इसके दाने भी अजवायन से बड़े आकार के होते हैं। अजमोदा का प्रयोग करके एक आयुर्वेदिक औषधि भी बनाई जाती है, जिसमें वैसे तो ढेर सारी जड़ी-बूटियाँ मिली होती हैं। इसे ही अजमोदादि चूर्ण ही जाता है। लगभग सभी प्राचीन एवं आधुनिक आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अजमोदा का वर्णन पाया जाता है। यूनानियों को अजमोदा का ज्ञान भारतीयों से ही हुआ था।
अजमोदा क्या है?
अजमोदा (Ajmoda Plant) ढेर सारे पत्तों और सफेद फूलों वाली द्विवार्षिक पौधा है। इसके चमकीले हरे पत्ते बिखरे तथा सिकुडे हुए होते हैं। अजमोदा के दो प्रमुख प्रकार हैं। एक जो पत्तों के लिए बढ़ाई जाती हैं और दूसरी जो शलजम जैसी जडों के लिए बढ़ाई जाती है। इसके फूलने वाला डंठल दूसरे साल में 100 से.मी. तक लंबे हो जाते हैं।
इसके फूल पीले या पीली आभा लिए हरे रंग के होते हैं। पत्ते और बीज (ajmoda seeds) मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इसमें एक उड़नशील तेल होता है जिसके कारण इसकी अपनी एक विशेष एवं मसालेदार सुगन्ध होती है।
Apium Graveolens roots
अनेक भाषाओं में अजमोदा के नाम (Ajmoda Names in Different Languages)
अजमोदा का लैटिन भाषा में वानस्पतिक नाम एपियम ग्रेवोलेंस (Apium Graveolens) तथा Syn-Carum graveolens (Linn.) Koso-Pol. है। इसका एक और नाम carum roxburghianum भी है। यह एपियासी Apiaceae कुल का पौधा है। इसका अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में नाम नीचे दिये गए हैं –
Ajmoda/Celery Seeds in –
Hindi – अजमोद, अजमोदा, बड़ी अजमोद, अजमूदा, अजमोत
English (ajmoda in english) – Celery
Sanskrit – अजमोदा, अयमोदा, अजमोजा, खराश्वा, कारवी, मायूर, ब्रह्मकुशा, लोचमस्तका
Urdu – अजमोद (Ajmod)
Marathi (celery seeds in marathi)– अजमोदा (Ajmoda)
Bengali – रान्धुनी (Randhuni), अजमूद (Ajmud), चनु (Chanu), चंदनी (Chandani)
Nepali – अजमोडा (Ajmoda), जंगली ज्वानु (Jangali jwanu)
Punjabi – भूतजटा (Bhootjata)
Gujarati – बोडी अजमोदा (Bodi ajmoda), अजमोद (Ajmod)
Kannada (celery root in kannada)– अजमोदा वोमा (Ajmoda Boma), सेलेरिना (Selerina)
Tamil (ajmoda in tamil) – अजमोदा (Ajmoda), सेलेरीकेराई (Celery kerai)
Telugu (celery seeds in telugu) – अजुमोदा (Ajumoda), वोमा (Voma)
अजमोदा के फायदे-
अजमोदा का प्रयोग हिचकी, उल्टी, मलाशय यानी गुदा (Rectum) के दर्द, खांसी, बवासीर तथा पथरी आदि रोगों में लाभकारी है। पाचनसंस्थान के सभी अंगों पर इसका प्रभाव होता है और इस कारण पेट के रोगों को दूर करने वाली औषधियों में इसे मुख्य स्थान प्राप्त है। अजमोदा (ajmoda plant) के फल का चूर्ण या जड़ के काढ़े का सेवन करने से संधिवात, आमवात जैसे जोड़ों के दर्द वाले सभी रोग, गाउट यानी गठिया, हड्डी की कमजोरी के कारण होने वाले जोड़ो के दर्द, खाँसी, पित्त की थैली की पथरी तथा किडनी यानी गुर्दे की पथरी में बहुत लाभ होता है।
अजमोदा के बीज (Ajmoda Seeds) उत्तेजक, हृदय को बल प्रदान करने वाले,मासिक धर्म को नियमित करने वाले तथा पीब यानी पस निरोधक होते हैं। अजमोदा के बीज का तेल नितम्ब के दर्द को ठीक करता है, जलन समाप्त करता है और हृदय तथा नस-नाड़ियों को सक्रिय करने वाला होता है। अजमोदा की जड़ में भी यही गुण होते हैं।
दाँत के दर्द में अजमोदा से लाभ-
अजमोदा को आग पर हल्का भूनकर पीस लें और पाउडर बना लें। इस पाउडर को हल्के-हल्के मसूढ़ों व दांतों पर मलने से दाँत दर्द व मुँह के अन्य रोगों में तुरन्त लाभ होता है।
गले के संक्रमण में अजमोदा से फायदा-
गले का बैठना यानी बोलने में गले में दर्द होना, बहुत प्रयास करने पर भी गले से आवाज का नहीं निकलना आदि की समस्या को स्वरभेद कहा जाता है। एसिडिटी तथा गैस के कारण गला बैठने पर यवक्षार तथा अजमोदा के काढ़े को घी में पकाकर सेवन करें। इससे गले का संक्रमण ठीक होता है।
2-3 ग्राम अजमोदा को पानी में उबाल लें। इसमें सेंधा नमक डालकर मुंह में देर तक रख कर गरारा यानी कुल्ला (गंडूष) करें। इससे स्वरभेद आदि कण्ठ-विकारों में लाभ होता है।
अजमोदा के सेवन से सूखी खाँसी का इलाज-
पान के पत्ते में अजमोदा (Celery Seeds) को डालकर चबा कर धीरे-धीरे चूसने से सूखी खांसी में लाभ होता है।
दम फूलना तथा हिचकी में लाभकारी है अजमोदा का उपयोग-
2-3 ग्राम अजमोदा (Ajmoda Seeds) चूर्ण को गुनगुने पानी या शहद के साथ सेवन करने से दम फूलने में लाभ होता है।
भोजन करने के बाद हिचकियाँ आती हों तो अजमोद के 10-15 दाने मुँह में रखकर चूसने से हिचकी बंद हो जाती है।
भूख बढ़ाए अजमोदा का सेवन-
पिप्पली, अजमोदा आदि भूख बढ़ाने वाले कसैली औषधियों को मिला कर काढ़ा बना लें। काढ़े को पीना संभव न हो तो इनका चूर्ण यानी पाउडर बना लें। काढ़े या चूर्ण का सेवन करने से भूख खुल कर लगने लगती है।
पेट की गैस दूर करे अजमोदा का प्रयोग-
अजमोदा के प्रयोग से पेट में बनी गैस निकल जाती है और इसके कारण होने वाले दर्द आदि समस्याओं में आराम मिलता है। सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली तथा अजमोदा आदि द्रव्यों को मिला कर बनाए गए हिंग्वाष्टक चूर्ण का (2-4 ग्राम) सेवन करने से गैस से पेट फूलने की समस्या में लाभ होता है।
2-4 ग्राम अजमोदा (Celery Seeds) के चूर्ण को 10 ग्राम गुड़ के साथ मिला लें। इसे गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से अफारा यानी गैस से पेट का फूलना ठीक होता है।
दर्दयुक्त पेचिश ठीक करे अजमोदा का सेवन-
अजमोदा पेचिश की अच्छी दवा है। इसके सेवन से पतले दस्त, मरोड़ें, दर्द आदि ठीक होते हैं।
5 ग्राम मधु, 5 ग्राम मिश्री, 1 ग्राम अजमोदा, 2 ग्राम कट्वंग और आधा ग्राम मुलेठी को पीस कर के बारीक चूर्ण यानी पाउडर बना लें। 100 मिली दूध में 10 ग्राम घी के साथ इस चूर्ण को मिलाकर पीने से पेचिश के कारण होने वाला दर्द दूर होता है।
पाठा, अजमोदा, कुटज की छाल, नीलकमल, सोंठ तथा पिप्पली सभी को मिला कर कूट-पीस कर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण (2-4 ग्राम) को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से पेचिश ठीक होता है।
अजमोद, सोंठ, मोचरस एवं धाय के फूलों को समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को छाछ के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से पतले दस्त (अतिसार) बंद हो जाते हैं।
उल्टी बंद करे अजमोदा का सेवन-
कई बार कुछेक कसैली तथा कड़वी दवाओं के सेवन से रोगी को उल्टी हो जाती है, जिससे उन औषधियों का लाभ नहीं हो पाता। ऐसी औषधियों के साथ अजमोदा के 2-5 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उल्टी की आशंका नहीं रहती है।
2-5 ग्राम अजमोद एवं 2-3 लौंग की कली को पीस कर 1 चम्मच मधु के साथ चाटने से उलटी बंद होती है।
पेट का दर्द मिटाए अजमोदा का सेवन-
पेट के दर्द का मुख्य कारण आम यानी अनपचा भोजन तथा उसके कारण बनने वाली गैस होती है। अजमोदा भोजन को पचाता है और गैस को समाप्त करता है।
तीन ग्राम अजमोदा के चूर्ण में एक ग्राम काला नमक मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लें। पेटदर्द में आराम होगा।
अजमोदा के एक ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम गुनगुने जल के साथ सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
अजमोदा तेल की 2-3 बूंदों को 1 ग्राम सोंठ के चूर्ण में मिला कर गुनगुने जल के साथ सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
बवासीर में लाभकारी है अजमोदा का प्रयोग -
बवासीर में मस्सों के कारण शौच में असहनीय पीड़ा होती है। इस पीड़ा के लिए ही नीम हकीम लिखते हैं सहा भी न जाए और कहा भी न जाए। अजमोदा को गर्म कर कपड़े में बांधकर मस्सों को सेंकने से दर्द में आराम होता है।
अजमोदा के प्रयोग से मूत्र रोग का इलाज-
अजमोदा की जड़ के 2-3 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब करने में दर्द, जलन आदि की समस्याएं ठीक होती हैं।
गैस के कारण मूत्राशय में दर्द होने पर अजमोद और नमक को साफ कपड़े में बांधकर पेट के निचले हिस्से यानी पेड़ू में सेंक करने से लाभ होता है।
अजमोदा के इस्तेमाल से पथरी का इलाज-
किडनी या मूत्रमार्ग (Urine Passages) में पथरी हो तो ऑपरेशन कराने की आवश्यकता नहीं है। अजमोदा में पथरी को गलाने का गुण होता है। 2-3 ग्राम अजमोदा के चूर्ण में आधा ग्राम यवक्षार मिला लें। इस चूर्ण को 10 मिली मूली के पत्तों के रस के साथ कुछ दिनों तक नित्य सुबह-शाम पीने से पथरी गल कर निकल जाती है। पेशाब भी खुलकर होता है।
दर्द तथा सूजन मिटाए अजमोदा का उपयोग -
अजमोदा में दर्द और सूजन को दूर करने के गुण होते हैं। यह वात का शान्त करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है। यह विचामिन सी तथा एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्रोत है और इसलिए गठिया बाय के दर्द को दूर करने में सहायक है। जोड़ों आदि शरीर की सूजन तथा दर्द को मिटाने के लिए इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
अजमोदा तथा सोंठ को मिलाकर महीन चूर्ण यानी पाउडर बना लें। इस चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में लेकर पुराना गुड़ मिश्रित कर गुनगुने जल के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से जोड़ों की सूजन, गठिया के कारण जोड़ों के दर्द, पीठ व जांघ का दर्द तथा अन्य वात रोग नष्ट होते हैं।
अजमोदा, छोटी पीपल, गिलोय, रास्ना, सोंठ, अश्वगंधा, शतावरी एवं सौंफ इन आठ पदार्थों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को डेढ़ ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम घी के साथ दिन में दो बार सेवन करने से शरीर में होने वाली सूजन और वात विकारों में लाभ होता है।
अजमोदा को तेल में उबालकर मालिश करने से पीठ तथा बगलों में होने वाले दर्द में आराम मिलता है। अजमोदा के पत्तों को गर्म करके रोगी के बिस्तर पर बिछा देना चाहिए, ऊपर से रोगी को हल्का कपड़ा ओढ़ा देना चाहिए। इससे भी दर्द में आराम मिलता है।
अजमोदा की जड़ के काड़े को 10-20 मिली मात्रा में पीने से या फिर अजमोदा की जड़ के 2-5 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली सूजन तथा दर्द में आराम मिलता है।
कुष्ठ रोग या कोढ़ में अजमोदा के उपयोग से लाभ-
अजमोद (ajmoda) के 2-5 ग्राम चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर 7 दिन तक दिन में दो-तीन बार सेवन करने से शीतपित्त व कोढ़ रोग ठीक होते हैं। इस प्रयोग का सेवन करने के दौरान उपयुक्त तथा हितकारी भोजन ही लेना चाहिए और वस्त्र-निवास आदि में स्वच्छता का पालन करना चाहिए।
घावों को ठीक करे अजमोदा का प्रयोग-
फोड़े यदि कच्चे हों तो उन्हें जल्दी पकाने के लिए अजमोदा को थोड़े गुड़ के साथ पीसकर सरसों के तेल में पका लें। इसे किसी साफ कपड़े में लगा कर घाव पर पट्टी की तरह बांधें। फोड़े शीघ्र पक कर फूट जाएँगे।
अजमोदा के फल का 1-4 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से घावों से खून का बहना बंद होता है।
अजमोदा के इस्तेमाल से बुखार में फायदा-
चार ग्राम अजमोद (ajmoda) को नित्य सुबह ठंडे पानी के साथ बिना चबाए निगल जाएं। पुराने से पुराना बुखार ठीक होगा।
पेट में कीड़े की समस्या में अजमोदा ले लाभ-
बच्चों की गुदा में कीड़े हो जाने पर अजमोदा को उपलों की आग पर डालकर धुआं दें और अजमोदा को पीसकर गुदा में लगाएं। कीड़े मर कर निकल जाएंगे।
अजमोदा के उपयोगी हिस्से
बीज
जड़
पत्ते
तेल
अजमोदा से सेवन से ये नुकसान भी हो सकते हैंः-
विदाही होने के कारण अजमोदा का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से छाती में जलन हो सकती है।
गर्भाशयोत्तेजक होने के कारण गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
मिर्गी के रोगी को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
अजमोदा कहाँ पाया या उगाया जाता है ?
अजमोदा (ajmoda) सामान्यतः पूरे विश्व में पाया जाता है। यह पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है, परंतु विशेष रूप से हिमालय के उत्तरी और पश्चिमी प्रदेशों, पंजाब की पहाड़ियों आदि में इसकी खेती होती है। भारत के अलावा भूमध्यसागरीय इलाकों में इसकी खेती बहुतायत में होती है।
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